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11 Nov 2018 · 1 min read

माँ की महिमा

ज्ञानवती होती है माता, मन की भाषा पढ़ लेती है ।
संतानें कब क्या चाहती, अनुभूति से तड़ लेती है ।
इतने गहरे मनोज्ञान को, कैसे मैं कविता में बांधूँ ॥

आकाश सी व्यापक ममता, जो सुन लेती चित धरती है ।
गीता रामायण की शिक्षा, संतानों को नित देती है ।
संस्कारमय उसकी शिक्षा, गुरुकुल की शिक्षा ही मानूँ ॥

जीवन मूल्य मानवी चिंतन, गौ मुख से निकली जलधारा ।
सरस्वती को अंक समेटे, पी जाती दुख दर्द हमारा ।
जहाँ मुखर हो हर हर गंगे, उसके मन को कैसे नापूँ ॥

कष्टों में धीरज धारण कर, स्वाभिमान हित लड़नेवाली ।
परिवार पर कष्ट आये तो, जब तक प्राण, करे रखवाली ।
माँ की महिमा गाऊँ कहाँ तक, जग जाने मैं बता न पाऊँ ॥

लक्ष्मी नारायण गुप्त
ग्वालियर (मध्य प्रदेश)

7 Likes · 34 Comments · 547 Views
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