माँ की छांव
मिली छांव माँ की भुलाना नहीं है
झूठी भक्ति उसकी दिखानी नहीं है
चली आ रही शक्ति नवरात्रि में जब
जला ज्योति को अब मनाही नहीं है
करे वंदना उसी दुर्गे की सदा जो
मनोकामना पूर्ण ढिलाई नहीं है
चले जो गलत राह कोई हमेशा
उसी की चंडी से जुदाई नहीं है
कपट, छल पले मन किसी के कभी तो
मृत्यु के बाद कोई गवाही नहीं है
सताया दुखी को धरा पर किसी को
कभी द्वार मां से सिधाई नहीं है
चली मां दुखी सब जनों के हरन दुख
दया के बिना अब कमाई नहीं है
भवानी दिवस नौ मनाओ खुशी से
बिना साधना के रिहाई नहीं है