Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
21 Apr 2024 · 2 min read

माँ का अबोला

याद नहीं कि माँ ने
कभी अबोला किया हो मुझसे
मुझसे भी यह न हुआ कभी

बस एक अबोला माँ ने किया
अपने जीवन की अंतिम घड़ी में
और फोन पर बतियाने से
साफ़ मना कर दिया था उन्होंने

गाँव पर थी माँ जब
जीवन की अंतिम सांसें गिनती हुईं
गया था पटना से बाल बच्चों समेत मिलने गाँव
हाँ मिलने मात्र
जबकि मुझ संतान से
सेवा शुश्रूषा पाने के
नितांत जरूरी दिन थे वे
लंबे समय से बिस्तर पकड़े माँ के

माँ से विदा लिया था
तो यह कहकर कि
बस लौटता हूँ
तुम्हारी दुलारी पोती को
दिल्ली छोड़कर दिन दो बाद ही

माँ ने मना नहीं किया
उस पोती के जीवन का सवाल था
जिसमें दादी के प्राण बसते थे
और पोती के दादी में
पर यह प्रतिदान पाने का अवसर न था!
माँ ने तो बस, देना ही जाना था
पोती को दी भरे गले सलाह
‘मेरा क्या, दिन दो दिन की मेहमान हूँ
दादी का मरा मुंह भी तुम
भरसक ही देख पाओगी
बेटी, रीत यही है दुनिया की
सुख में ही नहीं घने दुःख और विपत्तियों में भी
मनुष्य का आना जाना कहाँ रुकता!
जा रही हो और कलेजा फट रहा है मेरा’
देखा, आंसुओं की मोती-धार मोटी
माँ के दादी-गाल पर बह रही थी

‘मन लगा कर पढ़ना बउआ,
गाँव की पहली बेटी हो
जो इतनी दूर पढ़ने निकली हो
बेटी जात हो, जुआन, कांच-कुंवार हो तब भी
दिल्ली भेजा है पढ़ने तुम्हारे बाप ने
समूचे घर समाज से लड़ झगड़ कर
मेरा ही बस चलता तो क्या जाने देती!
कुछ भी ऐसा वैसा न करना
उम्मीदों पर बेटे के मेरे, सर-समाज के खरा उतरना’

जिस दिन बेटी दिल्ली जा रही थी
फोन आया घर से भैया का
माँ से बात कराना चाहा
पर माँ ने बात करने से मना किया
उन्हें मेरा उनके पास आने से
कुछ भी कम मंजूर नहीं था
मैंने एकतरफा ही माँ से संवाद किया था
कहा था माँ से
बस, आज ट्रेन पर चढ़ा तेरी लाडली को
कल सुबह घर के लिए
बस पकड़ता हूँ।

बेटी को सी-ऑफ करके ज्यों ही
पटना जंक्शन से डेरा लौटता हूँ
तो घर से फोन पर भैया होते हैं
कहते हैं – चल दी माँ

मैं माँ से किये अपने वादे
निभाने चल देता हूँ घर
घर जो पिता के मेरी अबोध-लरिकाई में ही चले जाने और अब माँ के जाने से
गांव भर रहा गया था

पहली बार हुआ था कि घर पहुंच कर
घर के दरवाजे पर लगी जमघट में मौजूद
किसी बड़े बुजुर्ग को न किया प्रणाम-पाती
न ही माँ के छुए पाँव और
न ही माँ थी सामने हुलस कर अपने जिगर के टुकड़े को
अधीर आतुर पाने को

माँ की छाती से लगकर
लाख रोता विलखता हूँ
माँ का हृदय नहीं पसीजता
पहली और अंतिम बार
इतना काठ-करेजा हो उठती हैं माँ
माँ कुछ नहीं बोलती
माँ का यह अबोला
जिन्दगी भर का साथ हो जाता है।

55 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Dr MusafiR BaithA
View all
You may also like:
सज गई अयोध्या
सज गई अयोध्या
Kumud Srivastava
*धन्य डॉ. मनोज रस्तोगी (कुंडलिया)*
*धन्य डॉ. मनोज रस्तोगी (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
ए दिल्ली शहर तेरी फिजा होती है क्यूँ
ए दिल्ली शहर तेरी फिजा होती है क्यूँ
shabina. Naaz
मां वो जो नौ माह कोख में रखती और पालती है।
मां वो जो नौ माह कोख में रखती और पालती है।
शेखर सिंह
सबकुछ झूठा दिखते जग में,
सबकुछ झूठा दिखते जग में,
Dr.Pratibha Prakash
भाई
भाई
Dr.sima
'प्रेम पथ की शक्ति है'
'प्रेम पथ की शक्ति है'
हरिओम 'कोमल'
फूलों सा महकना है
फूलों सा महकना है
Sonam Puneet Dubey
3388⚘ *पूर्णिका* ⚘
3388⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
इंसानियत का एहसास
इंसानियत का एहसास
Dr fauzia Naseem shad
जो आज शुरुआत में तुम्हारा साथ नहीं दे रहे हैं वो कल तुम्हारा
जो आज शुरुआत में तुम्हारा साथ नहीं दे रहे हैं वो कल तुम्हारा
Dr. Man Mohan Krishna
तुम बिन
तुम बिन
Dinesh Kumar Gangwar
उस रावण को मारो ना
उस रावण को मारो ना
VINOD CHAUHAN
अंत में कुछ नहीं बचता है..हम हँस नहीं पाते हैं
अंत में कुछ नहीं बचता है..हम हँस नहीं पाते हैं
पूर्वार्थ
आम, नीम, पीपल, बरगद जैसे बड़े पेड़ काटकर..
आम, नीम, पीपल, बरगद जैसे बड़े पेड़ काटकर..
Ranjeet kumar patre
हमारी सोच
हमारी सोच
Neeraj Agarwal
घर आंगन
घर आंगन
surenderpal vaidya
कोई दवा दुआ नहीं कोई जाम लिया है
कोई दवा दुआ नहीं कोई जाम लिया है
हरवंश हृदय
अगर आपको अपने आप पर दृढ़ विश्वास है कि इस कठिन कार्य को आप क
अगर आपको अपने आप पर दृढ़ विश्वास है कि इस कठिन कार्य को आप क
Paras Nath Jha
मृदुभाषी व्यक्ति मीठे अपने बोल से
मृदुभाषी व्यक्ति मीठे अपने बोल से
Ajit Kumar "Karn"
..
..
*प्रणय*
मेरा होकर मिलो
मेरा होकर मिलो
Mahetaru madhukar
मानव जीवन की बन यह पहचान
मानव जीवन की बन यह पहचान
भरत कुमार सोलंकी
रोज गमों के प्याले पिलाने लगी ये जिंदगी लगता है अब गहरी नींद
रोज गमों के प्याले पिलाने लगी ये जिंदगी लगता है अब गहरी नींद
कृष्णकांत गुर्जर
ॐ
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
स्तुति - गणपति
स्तुति - गणपति
DR ARUN KUMAR SHASTRI
तुम कहती हो की मुझसे बात नही करना।
तुम कहती हो की मुझसे बात नही करना।
Ashwini sharma
खामोस है जमीं खामोस आसमां ,
खामोस है जमीं खामोस आसमां ,
Neeraj Mishra " नीर "
उफ्फ,
उफ्फ,
हिमांशु Kulshrestha
" नाम "
Dr. Kishan tandon kranti
Loading...