माँ और फौज़ी बेटा
———————- माँ फौजी बेटे से ———————-
फ़ोन लगाया माँ ने गुस्से में अपने फौजी संतान को।
” क्यों डुबाया तू ने एक माँ के मान और सम्मान को ?”
दुश्मनों को मार गिराने की तू ने तो कसम खायी थी।
फिर कौन सी मजबूरी और लाचारी तेरे सर आयी थी?
क्यों कुछ कुत्तों की टोली पड़ी तुम शेरों पे भारी थी?
क्यों हथियार रहते तुम्हारी सेना उन कुत्तों से हारी थी?
गीदड़ों की टोली को खदेड़ वीरों ने तिरंगा लहराया है,
पर तुम ने बेटा एक माँ की कोख को लजाया है।
बहना को लोग बोलते कैसा बुजदिल तेरा भाई है।
बहुत मलाल है बेटा कि तू ने देश की नाक कटाई है।
———————— फौजी माँ से ————————-
फौजी का सर है झुकता देश और माँ के सम्मान में।
माँ!तेरा बेटा हमेशा तैयार खड़ा है तिरंगे की शान में।
बस ये समझ ले माँ अपनी भी कुछ मज़बूरी थी।
ऊपर से फ़रमान जारी था चुप्पी बेहद जरुरी थी।
गोली का आदेश नहीं था पर डटे वहाँ रहना था।
हथियारें मानो अपने हाँथों का सिर्फ खिलौना था।
फ़रमानों के आगे फौजियों को बेबस होना पड़ता है।
इन हाथों को मौत देने से पहले बेमौत मरना पड़ता है।
इक इक कर बदला लूंगा माँ, कसम ये मैं ने खाई है।
छुटकी से कह देना माँ कि बुज़दिल नहीं तेरा भाई।