महिला
?? अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर मातृशक्ति को नमन करते हुए एक रचना प्रस्तुत करता हूं. ??
जिस कोख से सबने जन्म लिया, मैं उसकी बात सुनाता हूं,
बिन जिसके यह जग, जग ना होता, मैं गीत उसी के गाता हूं।
है कौन सा कोना दुनियां में, जिसमें वह हरदम मौजूद न हो,
कन्धों पर जिसके विश्व टिका, उस नारी को सलाम बजाता हूं।
दिनरात एक कर देती जो, संतति का हो उज्ज्वल भविष्य,
खुद के लिए कुछ भी ना मांगे, उस माँ को शीश नवाता हूं।
अपने हिस्से की रोटी भी, जो न्योछावर कर दे भाई पर,
रूठने मनाने वाली हर बहना की, रक्षा मैं करना चाहता हूं।
जीवन भर अपने संगी पर, बलिदान करे सब खुशियों को,
उस धर्मसंगिनी प्रियतम की, मुस्कान पर सर्वस्व लुटाता हूं।
संगी की रक्षा उन्नति निश्चित हो, व्रत उपवास अनेकों रखती है,
बदले में जीवन की सारी खुशियां, मैं उसे दिलाना चाहता हूं।
बिन नारी के नर ना होता, और ना ही यह दुनिया होती,
जो इक पहिये पर चल निकले, ना ऐसी कोई गाड़ी होती,
संसार की उन्नति, पालन पोषण में, है जिसका अनुपम योगदान,
उस शक्तिस्वरूपा नारी समक्ष, मैं फिर से शीश नवाता हूं।
प्रवीण त्रिपाठी
08 मार्च 2017