महिला दिवस
महिला दिवस पर स्वरचित रचना
ना तब भी कमजोर थी ना अब कमतर कौम…
तब काली का रूप थी अब भी मेरीकॉम…
अब भी मेरीकॉम किरण बेदी और अरुधंती…
जब भी भृकुटी तने किसी की कुछ नहीं चलती..
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अबला, नाजुक, शोषिता नामकरण अविवेक…
बस मिथ्या संवेदना रहे है रोटी सेक…
रहे हैं रोटी सेक जिंदगी रथ है गतिरत…
रथ के अविरल चक्र पुरुष और औरत…
भारत स्त्री के बिना पुरुष होता प्रलयंकर…
तांडव और संहार मात्र करते शिव शंकर…
पुरुष वंचिता नारी भी संहार है करती…
इच्छा मृत्यु वरद भीष्म के प्राण है हरती…
मत सहलाओ घाव मित्र उनको पुरने दो…
जीवन है उत्सर्ग नीड़ उनको बुनने दो..
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भारतेन्द्र शर्मा “भारत”
धौलपूर, राजस्थान