महिला दिवस : एक छलावा
क्या वृद्धावस्था केवल पुरुषों को ही आती है ?
स्त्रियों को नहीं।
क्या अपने कार्यक्षेत्र से काम करके थकते केवल ,
पुरुष है ?
स्त्रियां नहीं।
तो खुद को अधिक उम्रदराज ,
खुद को अधिक थका हुआ,
क्यों दर्शाते हैं यह पुरुष ?
क्या साबित करना चाहते हैं पुरुष ?
वही इंसान है ,
हाड़ मांस के बने हुए ।
क्या स्त्रियां रबर की बनी हुई है ?
क्या उनमें जान नहीं होती ?
क्या उन पर बुढ़ापा नही आता?
क्या वोह बीमार नहीं पड़ सकती?
या शायद उन्हें बीमार पड़ने का हक ही नही है ।
उन्हें घर के ढेरों काम करते हुए ,
परिवार की सेवा और उन सबकी जिम्मेदारियां
पूरी करते हुए ,
थकने का भी अधिकार नहीं।
बुजुर्ग हो जाए तब भी काम करना है ।
पहले पति और सास ,
फिर बहु बेटे की भी सेवा करनी है।
उन्हें सारी उम्र काम करना है।
यहां तक के मृत्यु शैय्या पर भी ।
जब तक स्त्रियों को पुरुष समाज ,
मनुष्य नहीं समझेगा ।
तब तक हर वर्ष महिला दिवस मनाना व्यर्थ है।
उस दिन भी गनीमत है की ,
किसी किसी भाग्यशाली नारी को ,
आराम और सम्मान मिल जाए ,
मात्र एक दिन के लिए !
अन्यथा कुछ नारियां तब भी ,
अपने गृह कार्यों और पारिवारिक जिम्मेदारियों,
से खूंटे की भांति बंधी होती है।
फिर कैसा महिला दिवस ?
यह मात्र ढोंग है ।
वास्तव में यह महिला दिवस मात्र एक छलावा है।
बस एक दिन के लिए खास महसूस करवाना,
और बाकी दिन !!