महिमा है सतनाम की
बन जाते हैं वरदान श्राप, जब हेतु गलत होते हैं
जल जाते हैं होलिका जैसे, प्रहलाद अमर होते हैं
गई असत्य के साथ, वरदान भी उसका शाप बन गया
नहीं डिगा प्रहलाद सत्य से, सत् से जीवन दान मिल गया
नाभि में अमृत कुंड, त्रिलोक विजयी रावण था
एक वरदानी महावीर, उद्देश्य नहीं पावन था
वरदान बन गए श्राप, विफल हुआ हर साधन था
छोटे से कृष्ण कन्हैया,कंश बड़ा बलशाली था
बड़े बड़े असुरों का साथ,अंतस सत्य से खाली था
बच न पाए असत्य के कारण,कंश और क्या बाली था
भरी पड़ी हैं ढेर कथाएं, श्राप और वरदान की
आखिर सत्य विजयी होता है, महिमा है सत नाम की
सुरेश कुमार चतुर्वेदी