महाश्रंगार छन्द
सादर समीक्षा हेतु
महाश्रंगार छन्द
32 मात्राएँ 16, 16 पर यति
गोपियों साथ रचाते रास,
झलकता मधुवन में है प्यार।
अधर पर रखे सदा मुस्कान,
करें सब गोप सखा दीदार।।
कृपा हम पर कर दो हे श्याम,
रहे चरणों में तेरे ध्यान।
मिटा दो विपदा आज तमाम,
अभी मैं बालक हूँ नादान।।
लगा शुभ मोर मुकुट है शीश,
बाँसुरी सोहे प्रभु के हाथ।
करूँ मैं प्रतिदिन पूजा पाठ,
चढ़ाऊँ माखन मिश्री नाथ।।
साथ में चढ़े सुगन्धित पुष्प,
जलाकर दीप करूँ गुणगान।
यही है मेरी तुमसे आस,
दीजिये निज चरणों में स्थान।।
हमारे मन मंदिर में आप,
राधिका सहित विराजो श्याम।
ह्रदय के अंतर्मन से श्याम,
निहारूँ युगल रूप अभिराम।।
करा दे सपने में दीदार,
सुना दे वंशी की वो तान।
जिसे सुन मिले मुझे आराम,
मधुर रस से भर जाएँ कान।।
अभिनव मिश्र अदम्य