महारथी धनुर्धरा
महारथी धनुर्धरा
*************
नन्ही कली जब-जब चली।
रख पॉव हस्त कर तर्जनी।
तेरा हर इशारा पढ़ सकूं।
पग-पग सहारा बन सकूं।
न आने दूँ तुझे ऑच मैं।
दुनियां दिखा दूँ बाँच मैं।
तेरी समझ से जग बाहर है।
हर फूल पे करता प्रहार है।
यथार्थ में जग है बुरा।
मैं तुझे बनाऊंगी शूरा।
लड़ ! जगत की हर जंग तू।
कर दें ! धरा को दंग तू।
बतला दें कन्या है सबल।
रखती भ्रात से अधिक बल।
मुझें कोख़ में ना तू मसल।
वक्त रहते मानव तू संभल !
मै हूँ दुर्गा-शक्ति संहारिणी !
कर धनुर -त्रिशूल धारिणी।
जग पलता मेरी कोख़ है।
मेरे जन्म पे क्यों रोक है।
क्या हश्र इसका तू जान लें !
मेरा सत-स्वरुप पहचान लें !
सुधा भारद्वाज
विकासनगर उत्तराखण्ड़