महामारी का प्रभाव
महामारी का प्रभाव
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बन्द पड़े है बन्द कमरों मे,किसी से नजरे मिलाते नहीं।
हाथ उठते हैं दोनों तरफ से,फिर भी हाथ मिलाते नहीं।।
कैसी है ये महामारी,इसके आगे सर उठाता कोई भी नहीं।
वैक्सीन बनी है लेकिन,महामरी का अंत दिखाई देता नहीं।।
जितने मुंह उतनी बातें,किसी को कुछ इस बारे में पता नहीं।
मार रहे है धूल मे लठ,कहां लग रहा है किसी को पता नहीं।।
पता नहीं कब तक चलेगी महामारी किसी को कुछ पता नहीं।
कर रहे हैं सभी दावे,इन दावों के छोर का भी कुछ पता नहीं।।
मर रहे हैं इतने महामारी से,शमशानो में कोई अब जगह नहीं।
बीमार पड़ चुके हैं इतने लोग,अस्तपतालो मे अब जगह नहीं।।
लिखे तो लिखे क्या रस्तोगी,उसके पास कोई शब्द ही नहीं।
कागज कलम सब कुछ है,उसका अब लिखने का मन नहीं।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम