महाकाल महिमा
कल कल बहती गंग धारा , जिन जटओं से
कंठ नीला पड़ गया हो , जहर की धाराओं से
सर्प ले रहा हो अंगड़ैया , जिस शिरोधरा पर
तांडव कर रहे महाकाल , डमरू की ताल पर
है वो महाकाल परिपूर्ण , चौंसठ कालों से
अकाल मर्यतु कट जाती , जो जपता महाकाल को
जो धारण करता हो , बाघंबर की छाल को
सवारी करते है बैल की , डमरू सोभए तिरशूल पर
देख कर ब्रम्हांड काँपे , कालों के काल से
हर सुख संपाती दान करे , बैठ कर कैलाश से
हर दुख दर्द मीट जाए , जो भक्ति करे प्यार से
बुला रहे महाकाल तुम को , उज्जैन की पवन धरा पर
तांडव कर रहे महाकाल , डमरू की ताल पर
है वो महाकाल परिपूर्ण , चौंसठ कालों से
नीरज मिश्रा ” नीर ” बरही मध्य प्रदेश