महाकाल बन जाते हैं
आज समर्पित कविता भारत माँ की आँख के तारों को
जान निछावर करने वाले देश के पहरेदारों को
पहन के वर्दी तान के सीना जब ये शेर निकलते हैं
जंगल हो या पर्वत, नदियाँ हो बिंदास टहलते हैं
भारत माँ की जय सुनते ही तबियत खिलने लगती है
उच्च हिमालय के सीने की बर्फ पिघलने लगती है
आमजनों की रक्षा हित ये सदा ढाल बन जाते हैं
बारूदों की भस्म लगाकर महाकाल बन जाते हैं
सुन दहाड़ ठंडी वादी भी आग उगलने लगती है
कदमताल जब करते हैं ये धरती हिलने लगती है
टैंक भी इनकी क्रोध अग्नि में पल में राख हो जाता है
एक-एक दुश्मन की खातिर सवा लाख हो जाता है
बात आन पर आ जाए तो फिर हथियार उठाते हैं
दुश्मन के घर में घुसकर के उसको सबक सिखाते हैं
मातृभूमि के लिए जियाले हँस के जान दे देते हैं
कुर्बानी की बात चले तो शीश दान दे देते हैं
कोई भी आपदा पड़े अविलम्ब सामने आते हैं
बाढ़ हो या भूकम्प,सुनामी सबसे जा टकराते हैं
घर-परिवार की याद सताए तो भावुक हो जाते हैं
बर्फ की चादर ओढ़ के आँखें खोले ही सो जाते हैं
‘संजय’ देश के वीर जवानों का हरदम सम्मान करो
उनकी निष्ठा, देशभक्ति को बारम्बार प्रणाम करो