महबूबा
सरहदों की रक्षा करते हुए, वीर सैनिक का लहू उबल जाता है।
तन-मन में फुर्ती बनी रहती, धमनियों का पारा उछल जाता है।
सरहदों पे डटे हर फौजी को, हम सब आठवाॅं अजूबा कहते हैं।
ये आशिक भी इस सरज़मीं को, न जाने क्यों महबूबा कहते हैं?
इस तिरंगे के आगे हर फौजी, राष्ट्रीय सुरक्षा की शपथ खाता है।
एक प्रहरी अपना सर्वस्व ही, एक देश पे बलिदान कर आता है।
हम तो इन साहसी वीरों को, देशभक्ति के नशे में डूबा कहते हैं।
ये आशिक भी इस सरज़मीं को, न जाने क्यों महबूबा कहते हैं?
जब जब भारत पर संकट पड़ा, इन्होंने जीवन अपना त्यागा है।
इनके अदम्य साहस को देखकर, दुश्मन भी उल्टे पाॅंव भागा है।
इन्हें देश का अभेद कवच, सबकी भलाई का मनसूबा कहते हैं।
ये आशिक भी इस सरज़मीं को, न जाने क्यों महबूबा कहते हैं?
सैनिक रहेगा तो कोई दुश्मन, कभी सीमा पार नहीं कर पायेगा।
जितनी बार दुस्साहस करेगा, वो उतनी ही बार मुंह की खायेगा।
दुश्मन की चाल हो बेहाल, इसे ही तो सेना का तजुर्बा कहते हैं।
ये आशिक भी इस सरज़मीं को, न जाने क्यों महबूबा कहते हैं?