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12 May 2019 · 1 min read

महतारी के कोरा (छत्तीसगढ़ी कविता)

महतारी के कोरा

सरग बरोबर लागे मोला
महतारी के कोरा,
छप्पनभोग बरोबर लागे
तोर बासी वाले कटोरा,

जूठा कंउरा तोर ओ दाई
अमृत ले हे भारी ओ,
आशिष जइसन लागे मोला
मया भरे तोर गारी ओ,

सउख का मोर पूरा करे बर
लुटा दिए अपन खजाना,
तोर बिना ओ नइहे दाई
मोर जिनगी के ठिकाना,

मोर पांव म गड़थे कांटा
पीरा जनाथे तोला,
कतको दुख ल तै सहे
फेर नई कहे ओ मोला,

गुरतुर-गुरतुर लागे मोला
तोर मया के लोरी,
जग में सुघर हावे महतारी के
मया पिरित के डोरी,

तोर दूध के कर्ज़ा ल दाई
मैं ह कइसे छुटाहुँ ओ,
तोर कोरा के सुख ल दाई
कइसे मैं ह भुलाहुँ ओ,

आघु जनम म रइही दाई
मोला तोर अगोरा,
सरग घलो ले सुग्घर हे
मोर महतारी के कोरा ।।

– विनय कुमार करुणे

Language: Hindi
909 Views
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