मर रही है भावनाएं
भावनाएं हैं मर रहीं बन रहा इंसान ज़िदा लाश
देख कर ये सब दिल है बड़ा उदास
टूट रहे सब रिश्ते नाते,मानवता का हो रहा विनाश
इंसानियत है दम तोड़ रही, वयथित मन छोड़ रहा अब आस
भावनाऐं हैं मर रहीं बन रहा इंसान ज़िदा लाश
मोह-माया,काम सत्ता,लोभ,तृष्णा के पीछे
सब हैं भाग रहे बिन जाने परिणाम,
हो रही है ये सिथति देखो लगभग आम
बदलेगा कया कभी ये रुख, सोंच रहा मैं काश
भावनाऐं हैं मर रहीं बन रहा इंसान ज़िदा लाश
उलटी गंगा है बह रही,
सच्चे का हो रहा मूंह काला
और झूठे का है बोलबाला
देश विदेश में हो रहा इससे हमारा उपहास
हो रहा है सभ्यता-संसकृति का कैसा सत्यानाश
भावनाऐं हैं मर रहीं , बन रहा इंसान ज़िदा लाश
ये सच है की, इस सबसे , हूँ मैं ज़रा निराश
लेकिन यकीं ये भी है के, सही राहकर लेंगें हम तलाश
हां बदलेगा ये भी रूख , हाँ बदलेगा ये भी रुख
मिलकर करने होंगे प्रयास
कि क्यों ? मर रहीं हैं भावनाऐ
क्यों बन रहा इंसान ज़िदा लाश।।
©® मंजुल मनोचा©®