*मय से भरी ऑंखें हमे जीने नही देती*
मय से भरी ऑंखें हमे जीने नही देती
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मय से भरी ऑंखें हमे जीने नहीं देती,
यादें सदा तेरी हमें सोने नहीं देती।
घायल हुआ जियरा रहा दम न बाकी,
भरते रहें आहें कभी रोने नहीं देती।
कब तक सहेंगे पीर हर दम जुदाई की,
दुनिया गमों का भार भी ढोने नहीं देती।
मन मे लगी है आग जलता है जिया मेरा,
दिल मे लगे जो दाग भी धोने नही देती।
प्याला जहर से है भरा तैयार मनसीरत,
यूँ रूह से तन मन अलग होने नहीं देती।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)