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14 May 2024 · 1 min read

मन: स्थिति

क्यों मैं उनके दुख को नहीं महसूस करता!
क्यों नहीं मैं लिखता, क्यूँ!
सब कुछ तो बिकता है!
क्यूँ नहीं मैं बिकता!

आज आसमान भी खाली है, अकेला है।
जिंदगी है! चार दिन का मेला है।।
जिल्लत ख़ुद पर है आती आज यूँ भी।
तन-कर्मों-कारण लोगों ने क्या-क्या झेला है।।

मन पंछी निर्दयी मटमैला है।
झूठा, अड़ियल, कर्मों से थकेला है।।
समझाओ तो भी बाज़ न आए।
दुष्कर, हठी, खपरैला है।।

मैं अपनी अना का‌ मरीज़ हूँ।
रोज उन्हीं लोगों से उक़्ता जाता हूं।।
बात करता हूं, आवाज़ रखता हूं।
नब्ज़ मिलने पर छोड़ देता हूं।।

– ‘कीर्ति’

Language: Hindi
43 Views

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