मन लुभाता हूँ
महीना आ गया सावन का मैं खुशियाँ मनाता हूँ।
कि त्योहारों के मौसम में मगन मन गुनगुनाता हूँ।
पड़े हैं बाग में झूले बरसती झूम कर बरखा
प्रिया के साथ रिमझिम में मिलन के गीत गाता हूँ।
मुहब्बत को पिरो कर बहन की रंगीन धागों में
सलोनी राखियों से बेटियों का मन लुभाता हूँ।
सभी खुश हैं कि छायी इस कदर कुदरत में हरियाली
झमाझम गुनगुनाती बुंदियों से सुर मिलाता हूँ।
न तुम होना कभी ग़मगीन मेरे दूर होने से
कि बन कर ख्वाब नींदों में तो मैं तुझको लुभाता हूँ।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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