मन मेरा अर्पित, तन मेरा अर्पित
मन मेरा अर्पित,तन मेरा अर्पित
हृदय का हर भाव समर्पित।
ख्वाबों की पतंगें,उड़े गगन में
पपीहे का वो राग समर्पित
मन मेरा अर्पित,तन मेरा अर्पित
हृदय का हर भाव समर्पित।
चाहत है अभी भेंट करूँ,मैं
एक गुलिस्तां फूलों का
न कह देना,न तुम प्रियवर
रूठकर तीखी बातों से
पाने की है तुझको,अजब लालसा
भ्रमर है जैसे-सुमन को समर्पित
मन मेरा अर्पित,तन मेरा अर्पित
हृदय का हर भाव समर्पित।
दिवास्वप्न मैं देखा बहुत हूँ
घने रात के अंधेरों में
सदा पास तेरे,मैं आना चाहूँ
रात्रि तुम्हारे ख्वाबों में
साथ में मधुर बात करूं,मैं
होता रग-रग मेरा हर्षित
मन मेरा अर्पित,तन मेरा अर्पित
हृदय का हर भाव समर्पित।
दोस्त निठल्ले हंसी उड़ाते
कहते, भाभी बड़ी मस्त कुड़ी
तीक्ष्ण बाणों से हुआ,मैं घायल
नजरों से तेरे जो नजर लड़ी
पास मेरे आ जाओ तुम
हो जाये तन-मन आकर्षित
मन मेरा अर्पित,तन मेरा अर्पित
हृदय का हर भाव समर्पित।
रात में टिम-टिम तारों के मध्य
चमकते अनोखे चन्द्र को देखा
परियों सी थी सजी हुई,तुम
आईने में शशि के, तुमको देखा
लगा तुम हो, मेरे भाग्य की रेखा
था,रोम-रोम मेरा रोमांचित
मन मेरा अर्पित,तन मेरा अर्पित
हृदय का हर भाव समर्पित।
– सुनील कुमार