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22 Jan 2019 · 1 min read

मन मंथर गति से कुछ डोले

मन मंथर गति से कुछ डोले
संभल रहा होठो तक आकर
चुप हूँ सोच रहा क्या बोलें।
पर लेखनी मचल उठती है,
नहीं रुके मन की हलचल ।
कितना चुप रह कर गुजारे
जीवन के अनपोल सुखद पल।।
सम्भव है संवाद स्वयं से
फिर क्यों गुमसुम रहूॅ आजकल ।।
सृजन और चिंतन की पूँजी,
नही कमाई और न धन बल।।
#विन्ध्य प्रकाश मिश्र विप्र

Language: Hindi
1 Like · 202 Views
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