“मन भी तो पंछी ठहरा”
“मन भी तो पंछी ठहरा”
मिलना तो मन का होता
तन की क्या दरकार,
शायद तुम इस राह पर आए
पहली-पहली बार।
तन का क्या माटी से सिरजे
मन कंचन की खान,
पर मन भी तो एक पंछी ठहरा
उड़ते सकल जहान।
“मन भी तो पंछी ठहरा”
मिलना तो मन का होता
तन की क्या दरकार,
शायद तुम इस राह पर आए
पहली-पहली बार।
तन का क्या माटी से सिरजे
मन कंचन की खान,
पर मन भी तो एक पंछी ठहरा
उड़ते सकल जहान।