मन भटकत रहौ फिरै
मन भटकत रहौ फिरै
कामकाज नहीं करें जरूरी
चहुं दिस रहौ फिरै, मन भटकत रहौ फिरै
भोर भई चाय मांगत हैं, फिर नाश्ता रहौ करै
अखबारों की खबरें पढ़कर, मोबाइल ध्यान धरै
व्हाट्सएप फेसबुक खोलें, ट्यूट भी रोज करै
चैट करें दुनिया भर में, न उम्र का लिहाज करै
मन भटकत रहौ फिरै
जैसे तैसे नहा रहा है, कपड़े रहें पड़े
तैयार होकर तुरंत भागता, इत उत रहौ फिरै
भूख लगे जब खाने आए, घर का रुचिकर नहीं लगै
चाइनीज चटकारे, पिज्जा पर लार गिरै
मन भटकत रहौ फिरै
बार-बार चाय को मचले, होटल पर जान रुकै
इधर उधर की बातें मारै, जीवन भर रहौ निरै
देर रात तक चैन न आवै, चैनल बदल बदल चलावै
मन कहीं तो नहीं लगै,मन भटकत रहौ फिरै
देश-विदेश भटक आवै है, बाग बगीचा मैं जावै है
कलियन कलियन भवरे जैसा, डोलत रहौ फिरै
नहीं सुनत हैं बात ये मेरी, एकाकीपन की सांझ घनेरी
नहीं सत्संग राम गुण गावै, जब चाहे विचलित हो जावै
निरौ ही रहो फिरै,मन भटकत रहौ फिरै
किसको कहूं दर्द में अपना, ये तो बिल्कुल नहीं सुनै
मन भटकत रहौ फिरै
सुरेश कुमार चतुर्वेदी