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30 May 2024 · 2 min read

मन-क्रम-वचन से भिन्न तो नहीं थे

मन-क्रम-वचन से भिन्न तो नहीं थे

बेशक हम पढ़े – लिखे कम थे
समझते ज्यादा थे, बोलते कम थे
और स्वभाव से नम थे।
हम आसानी से जान जाते थे
किसी की अभावग्रस्त तन्हाई को
वेदना को, पीड़ा को, दिल की गहराई को
जीवन- रहस्य की सच्चाई को
एकता और ईकाई को।
पहले करते थे पेड़ की पूजा
वृक्ष को भगवान मानते थे
करते थे गुरु सेवा
गुरु को पिता सदृश जानते थे।
आपस में भाईचारा था
पशुओं के लिए पर्याप्त चारा था
जंगलों में पेड़ों की हरियाली थी
चारो तरफ नए- नए फसलों की बाली थी।
द्वार-द्वार पर लगहर थी
बड़ों के लिए दिल में कदर थी
एकता प्रेम का न अभाव था
सेवा सुश्रुषा का दिल में भाव था।
रिश्तों को ईमानदारी से निभाते थे
जो भी था उसी को बांट-चोट के खाते थे।
सबको अपने कर्तव्य का भान‌ था
बड़ों के चरणों में छोटे का स्थान था।
मैकाले शिक्षा प्रणाली में जब से शिक्षा लेने लगे
स्वार्थ सिद्धि के गुर सीखने लगे
अंग्रेजी शिक्षा के प्रति हम काफी अभिभूत हुए
मानो मैकाले का अग्रदूत हुये।
मैंन मेड लर्निंग की जगह ब्रेड अर्निंग शिक्षा अपनाने लगे
टाई-बैच सूट-बुट वाली शिक्षा हमें भाने लगे
परिणाम यह हुआ कि
बच्चे पुरानी सभ्यता-संस्कृति से मूंह लिया
पाश्चात्य रीति रिवाज से अपने को जोड़ दिया।
पाँव लागी भूलकर हाय-हेलो बोलने लगे
जॉब पर जाकर माँ बाप को छोड़ने लगे।
खूब पढ़ लिखकर पेड़ों को अंधाधुंध काट रहे हैं
एक के लिए निर्धारित ओक्सीजन को सौ में बांट रहे हैं।
‘हम दो हमारे एक ‘ से परिवार बनाते हैं
रख एकलौता संतान को मेड के भरोसे
पति- पत्नी दोनों अकूत धन कमाते हैं।
कुछ अरसे के बाद ऐसा समय आयेगा
भाई को बहन नहीं और भाई भी
बहन के लिए तरसना पड़ जाएगा
किसी को साली नहीं तो
कोई भाभी बिन जीवन बिताएगा ।
ऐसे पढ़ें-लिखे लोगों से अनपढ़ ही हम अच्छे थे
दिल और दिमाग से तो कम से कम सच्चे थे।
जो वचन दे देते थे वह ब्रह्मा का लेख था
बुजुर्गों की बात में निकलता न मीन-मेख था।
अंध विश्वास में ही सही,हम सही थे
मन-क्रम-वचन से भिन्न तो नहीं थे।

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