मन को कर देता हूँ मौसमो के साथ
सहज भाव से लेखनी को लेकर अपने हाथ
मन को कर देता हूँ मौसमो के साथ
कभी नदियाँ कभी अम्बर
कभी पंक्षी कभी समुंदर
कभी बारिश कभी बुन्दो
पर लिख देता हूँ
कभी बदलते वेश
कभी बदलते परिवेश
पर लिख देता हूँ
कभी कोई घटना
जो झकझोर देती
हृदय की गहराइयों को
उस पर लिख देता हूँ
लेखनी को लेकर हाथ
मैंने कोशिश की
कविता तुम ने उसमें स्वर दिये
लोगो से अपनी बात कही
सहज सब ने मुझ को सहर्ष
स्वीकार किया है
सुशील तब जा कर
सुशील से “क्षितिज राज” हो पाया है
सुशील मिश्रा (क्षितिज राज)