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15 May 2023 · 1 min read

मन की सीमा

मन की भी अपनी सीमा है
मन कितना सह पाएगा?
खोलेगा जब भी अपना मुँह
व्यभिचारी कहलाएगा!
ग़र चुप रहकर सहता रहा
तो कायर बन रह जाएगा!
सच कहने का जो दम भरा
फिर दोस्तों संग न रह पाएगा!
बात-बात पर झूठ जो बोला
तब दुराचारी बन जाएगा!
बोल न मुँह पर सफेद झूठ
पापी पकड़ा जाएगा!
सबको खुश करते-करते
एक दिन थक जाएगा!
सौ अच्छी बातें बिसराकर
एक भूल याद रखा जाएगा!
जब सोचेगा अपने बारे में
खुदगर्ज समझा जाएगा!
करेगा ग़र सत्ता की ग़ुलामी
चाटुकारिता दिखलाएगा!
वाहवाही में घिरा रहा तो
अभिमानी हो जाएगा!
सच की धरातल पर रहकर
चरित्र निखर जाएगा!
दिया न्यायसंगत का साथ
तो स्वाभिमानी कहलाएगा।
मन की भी अपनी एक सीमा है,
देख ये मन शांत कैसे रह पायेगा?

Language: Hindi
169 Views
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