मन की व्यथा
जीवन की कुछ घटनाएं जो,
हमको विचलित करतीं हैं।
उमड़ घुमड़ दुर्दान्त मेघ सम,
मन को शापित करतीं हैं।
भूल चलूँ सारे अँधियारे,
ज्योतिर्मय दीपक कर दो-
हे हरि मेरे निर्मल पथ को,
जो भी बाधित करतीं हैं।
मन की व्यथा कथा का वर्णन,
किसे सुनाऊँ मै अपना।
जाग्रत कर दो भोर भुवन में,
मिट जाये भय का सपना।
विचलित कभी न होने पाऊँ,
आन बसो मन मन्दिर में-
माता पिता सखा भ्राता तुम,
मान मेरा प्रभु जी रखना।
डा.मीना कौशल
प्रियदर्शिनी