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5 Jul 2023 · 1 min read

मन की फितरत

मन की फितरत मन न जानें पल में भरे उछाल,
मोह से ग्रसित मन फंसा रहता झूठा मायाजाल,
बंधे रिश्ते नाते स्वार्थवश प्रीत की डोर गले में डाल,
चंचल मन की बेबसी समझ भी सका न बेताल।
शांत सागर-सा मन भी उथल-पुथल मचाएं भूचाल,
दोष किसी को क्या दे,मेरा,तेरा सबके मन का है हाल,
भ्रमित रहे मन हरिण सा होकर खुशियां ढूंढे बेहाल,
आलस्य मन भरकर रहता आज नहीं कल पर डाल।
मन की फितरत क्या समझे, बीते जाते दिन, साल,
मन की मन में रखता जो मानव फिर करता मलाल,
दृढ़ मनोबल रखता मन कर्म करता है फिर तत्काल,
नव ऊर्जा से भरकर मन, मिले फल, होता मालामाल।
मन न मांगे सही क्या ,फिर चल देता है टेढ़ी मेढी़ चाल,
उधेड़-बुन में लगा मन निकाल न ले जब बाल की खाल
जीवन रहस्य को समझे मन, चरित्र हो जाता विशाल।
-सीमा गुप्ता अलवर राजस्थान

6 Likes · 2 Comments · 542 Views
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