कहना
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एक कहावत हैं कि,
कहना आसान हैं और करना मुश्किल ।
पर कभी-कभी,
कहना भी ना होता आसान।
क्यूंकि पीछे पड़ी हैं,
अपनों की अपनों से खींचतान।।
सब खड़े हैं लेकर,
अपना अपना झूठा आत्मसम्मान।
चाहे इसके लिए कितना भी करना पड़े,
दूसरे का हद्द से ज्यादा अपमान।।
अपनी बातों को लेकर,
हर कोई जबरदस्ती करने को हैं अड़ा ।
पर दूसरा भी तो,
अपनी जिद्द लेकर हैं खड़ा ।।
विरह, विग्रह, और खुद की वाहवाही का लोभ,
सभी कर रहे इन्ही का भोग।
इसके आगे समरसता, समृद्धि, मोह, आत्मीयता,
का ना हो पा रहा कोई संयोग।।
इन सब बातो से,
हर कोई टूट जाता हैं।
अपनों के झगड़े में,
सब कुछ पीछे छूट जाता हैं।।
इसलिए,
सोच समझकर कहना,
ये दिल हैं बहुत नाज़ुक,
छोटी सी बात पर भी,
टूट जाता हैं।।
डॉ. महेश कुमावत