मन की गति
मन बहुत चंचल होता है। मन पर नियंत्रण बहुत कठिन है। दरअसल उस लकड़हारे ने खूंखार शेर से राजा की जान बचाई। राजा से पुरस्कार स्वरूप उसने एक रात के लिए राजनर्तकी कामिनी की सेवाएँ मांगी। वो राजनर्तकी अति सुन्दर होने से राजा को सर्वाधिक प्रिय थी।
वचनबद्ध राजा ने आदेश दिया कि आज की रात उस राजनर्तकी कामिनी को उस लकड़हारे के पास उनकी सेवा में भेज दी जाए। राजा के हुक्म की तामीली की गई।
उस लकड़हारा ने राजनर्तकी से अनुरोध किया कि वे उनकी पत्नी की वेशभूषा धारण कर शयनकक्ष में आएँ। पत्नी की वेशभूषा में लकड़हारे ने देखा कि वह राजनर्तकी उनकी अपनी पत्नी के आगे सुन्दरता के मामले में कुछ ना थी।
लकड़हारे ने उसी क्षण राजनर्तकी कामिनी को सैनिकों की अभिरक्षा में राजमहल के लिए बा-इज्जत विदा कर दिए।
प्रकाशित लघुकथा संग्रह : ‘मन की आँखें’ (दलहा, भाग-1) से,,,,
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
भारत भूषण सम्मान प्राप्त।