मन का सूनापन
मन का सूनापन
++++++++++
मन का सूनापन भरा नहीं,
मिले वंशीधर का साथ।
मन अधीर है,व्याकुल है
मानुष आकर थामों,मुरलीधर का हाथ।
विरक्त है हृदय का मेरा कोना,
जो कभी भरा नहीं
मन करता है बार-बार कान्हा का होना,
जीवन में मुझको प्यास हे तेरी–
कान्हा में खो जाऊं,ये ख्वाइश हे मेरी।
बांसुरी की मधुर धुन,सुनने को जी चाहता है।
राधा!बनकर,मोहन का सानिध्य
हृदय चाहता है।।
कान्हा के प्रेम में खोकर,
मन का सूनापन भरना चाहती हूं।
वंशी की धुन सुन में ,
बावरी हो जाना चाहती हूं,
कान्हा कि भक्ति में ,
डूब जाना चाहती हूं!!!!
विरह कान्हा का सहा जाता नहीं।
पथ निहारूं तुम्हारा मोहन—
हृदय से कान्हा नाम जाता नहीं।।
रटती रहतीं हूं पल-पल सुबह -शाम।
तेरा ही नाम गोपाल—
अब जीवन में नहीं दूजा काम!!!
सुषमा सिंह *उर्मि,,