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14 May 2024 · 1 min read

मन का उदगार

मन का उदगार लिखूं या
दिल का गुब्बार लिखूं ।
हालातों की हालत का
तार तार सौ बार लिखूं।।

लिखूं कलम से कैसे मैं
तेरी बर्बादी का मंजर ये।
रौंद सके तेरी व्यथा को
कहा से लाऊं खंजर ये।।

मन की पीड़ा जख्म से भारी
इसको दूर मिटाएं कौन।
हाकिम वाकिम सब मौन खड़े है
विपदा हल सुनाए कौन।।

मर्म का ज्ञाता मौन खड़ा है
उसको पास बुलाए कौन।
शायद समय की यही इजाजत
मन बैरी समझाए कौन।।

बसंत बहार चली बावरी
पत्तों का नाता टूटत जाय ।
नई कोपले जीवन भर दे
आशा रश्मि ना छूटत जाय।।

Language: Hindi
21 Views
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