स्थितिप्रज्ञ चिंतन
मनुष्य का जीवन विभिन्न उतार- चढ़ाव से युक्त होता है जीवन में सुख-दुःख के पल आते जाते रहते हैं।
विभिन्न परिस्थितियों में मनुष्य का मस्तिष्क भावनाओं से वशीभूत होकर क्रियाशील होने को बाध्य होता है।
इन परिस्थितियों में भावावेश में जो निर्णय लिए जाते हैं, वे कभी-कभी गलत सिद्ध होते हैं , जिसका प्रमुख कारण उन परिस्थितियों में मनुष्य का विवेक शून्य हो जाना है।
कुछ परिस्थितियों में समूह मानसिकता एवं सामाजिक परंपराओं एवं धारणाओ के प्रभाव से परिस्थिति का व्यक्तिगत आकलन करने में त्रुटि की संभावनाएं बढ़ जातीं है , जिसके फलस्वरुप अपरिहार्य हानि होती है।
विभिन्न परिस्थितियों में मानसिक संतुलन की अवस्था बनाए रखना नितांत आवश्यक है ,जो भावनाओं से परे व्यक्तिगत विवेक को जागृत कर सके , क्योंकि भावनाओं के वारिद छँटने पर हमें यह प्रतीत होगा कि हमारे निर्णय विवेकहीन सर्वथा गलत थे।
अतः विपरीत परिस्थितियों में भी भावनाओं पर नियंत्रण रखकर समूह दृष्टिकोण एवं धारणाओं से अप्रभावित रहकर स्थितप्रज्ञ चिंतन की आवश्यकता है, जो उन परिस्थितियों में व्यक्तिगत आकलन हेतु विवेक के प्रयोग से व्यवहारिक निर्णय ले सके, जिससे हमें भविष्य में उन परिस्थितियों में लिए गए निर्णय से पछताना ना पड़े ।
स्थितप्रज्ञ चिंतन के लिए यह आवश्यक है कि हम विभिन्न परिस्थितियों में अपना मानसिक संतुलन बनाए रखें एवं परिस्थिति का आकलन व्यावहारिकता की कसौटी पर करें , जो हमें उस स्थिति में संभावित उपयुक्त निर्णय लेने के लिए प्रेरित कर सके।
निर्णय लेने की प्रक्रिया में संभावित विकल्पों पर विचार करना भी आवश्यक है , जो उस परिस्थिति में हमें उपलब्ध हो सकें।
विकल्पों के चुनाव में हमें विकल्पों को श्रेणीगत रखते हुए विचार करना चाहिए , जो उस स्थिति में आकलन हेतु सटीक सिद्ध हो सकें।
स्थितिप्रज्ञ चिंतन का सर्वथा पूर्वाग्रहों एवं पूर्वानुमानों से मुक्त होना आवश्यक है।
स्थितिप्रज्ञ चिंतन में उन तत्वों का समावेश नहीं होना चाहिए जो अप्रमाणिक हो , अथवा जिनकी प्रमाणिकता संदिग्धता की श्रेणी में आती हो।
यथार्थ की कसौटी पर स्थितप्रज्ञ चिंतन आधारित होना चाहिए, जिसमें काल्पनिकता का लेश मात्र भी अंश ना हो।
स्थितिप्रज्ञ चिंतन में सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों पहलुओं पर विचार कर निर्णय लेना आवश्यक है, जिससे निर्णय को हर संभावित नकारात्मक त्रुटि से निरापद रखा जा सके।
स्थितिप्रज्ञ चिंतन में संभावित हानि- लाभ का विश्लेषण करना भी आवश्यक है। चिंतन में उन विकल्पों को खोजने का भी प्रयास करना चाहिए जिनसे होने वाली संभावित हानि में कमी की जा सके।
अंततोगत्वा स्थितिप्रज्ञ चिंतन मनुष्य के लिए आवश्यक है, जिससे विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए भी मनुष्य हर संभव एक विवेकशील निर्णय ले सके ,
और हर संभव होने वाली परिस्थितिजन्य भावनात्मक त्रुटि से स्वयं को सुरक्षित रख सके।