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4 May 2024 · 1 min read

आदमी

आदमी
———-
अच्छे बुरे का जाल
बुन रहा है आदमी

अपने बुने जाल में
फँस रहा है आदमी

उजले कामों से ही
डर रहा है आदमी

धड़ल्ले से काले तो
कर रहा है आदमी

नित्य अपनी आत्मा
बेच रहा है आदमी

साम दाम दंड भेद
कर रहा है आदमी

तब भी नहीं प्रसन्न
स्वयं से ही आदमी

लक्ष्य कौन सा चुनूँ
भ्रमित हुआ आदमी

स्वयं ही बना अरि
देख तो ले आदमी

मारने को उठ रहा
आदमी को आदमी

ईश्वर भी चकित है
क्या कर रहा आदमी।
~~~~~~~~~~~~~~
डा० भारती वर्मा बौड़ाई

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