‘कोहरा’ (मनहरण घनाक्षरी)
शीत का मौसम आया,
कोहरा घना है छाया,
धूप का दिखे न साया,
अलाव जलाइए।
धरा पर लगे ऐसे,
उतरे बादल जैसे,
वाहन चलेगा कैसे,
थोड़ा मंद जाइए।।
पवन है थमी – थमी,
नमी उस पर जमी,
श्वास भी है भाप बनी,
मूँगफली खाइए।
ओस सी बरस रही,
पात पे पसर रही,
घास है सरस रही,
अंगीठी ले आइए।।1
कोहरे का वितान है,
गली सुनसान है,
बालक परेशान है,
कोहरा भगाइए।
खेलने की करें हठ,
भागते बाहर झट,
एक ही लगाते रट,
थोड़ा समझाइए।।
दूध गरम पीजिए,
चाय गरम लीजिए
काली मिर्च अदरक,
उसमें मिलाइए।
खजूर बादाम खाएँ,
ठिठुरन को भगाएँ,
बीमार वृद्ध जन को,
रजाई उढ़ाइए।।2
-गोदाम्बरी नेगी