मधुमालती छन्द
मधुमालती छन्द, प्रथम प्रयासः
2212 2212
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है बात कुछ यूँ रात की।
उस ने नहीं जब बात की।
मैं जोर से बोला तभी।
क्या बात हुइ बता अभी।
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सुदामा
यूँ धर्मपत्नी ने कहा।
जाओ मुरारी के यहाँ।
है मित्र कृष्णा आपका।
जाओ अभी तुम द्वारका।
यूँ चल पड़ा कुछ प्यास से।
मिलने सखा की आस से।
कंटक भरी वो राह थी।
उसको कही न पनाह थी।
पहुँच गया वो द्वारका।
जो मित्र है घनश्याम का।
यूँ द्वारपालो से कहा।
भेजो मुरारी को यहाँ।
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स्वरचित:-
अभिनव मिश्र✍️✍️