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22 Feb 2024 · 1 min read

निज प्रभुत्व में हैं जीते जो

द्वंद अनेकों पलते देखे,
संवेदनहीन विचारों में ।
मानवता का करें अनादर,
निज प्रभुत्व में हैं जीते जो ।।

भेदभाव की नीति सुहाती,
विश्वासों का गला घोंटते ।
अपने वक्तव्यों से जग में,
संप्रदाय की पौध रोपते ।
मढ़ते हैं आरोप उन्हीं पर,
नित घाव जगत के सीते जो ।।
मानवता का करें अनादर—–

कुटिल मलीन सोच है जिनकी,
व्यक्तित्व बालि सा दिखता है ।
इतिहास सदा इन जैसों को,
कायर, कपूत ही लिखता है ।
घोल रहे विष उन्मादों का,
अमृत यहाँ स्वयं पीते जो ।।
मानवता का करें अनादर—

सत्य रौंदते झूठ तले जो,
झूठों को सच्चा बतलाते ।
धर्म – जाति के अस्त्र थमाकर,
एक – दूसरे को लड़वाते ।
वही कर्म का ज्ञान बाँटते,
हैं सत्कर्मों से रीते जो ।।
मानवता का करें अनादर—

✍अरविन्द त्रिवेदी
महम्मदाबाद
उन्नाव उ० प्र०

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