मत सुनाना मन की बात
गौर जरा सा कीजिए,
बिगड़ रहे हालात ।
कलयुग में भाता नहीं,
अब कहना सच्ची बात ।।
मुख खोलो जरा सोच के,
दो शब्दों को तौल ।
बिन माँगे जो सीख दे उनकी,
उड़ाते लोग मखौल ।।
तुम हो सच्चे आदमी,
कुछ नहीं तुमको ज्ञात ।
बस मतलब की दोस्ती,
मिलती हैं फिर लात ।।
सभी को दिया तुमने,
सदा मान सम्मान ।
पर रखा किसने आपका,
बताओ यहाँ पर ध्यान ।।
परिवार को सुख दे दिया,
खुद झेले दुःख अपार ।
जीत सभी ने बाँट लिया,
किसने बाँटी हार ।।
मैं करता नहीं आलोचना,
कहता हूँ सच्ची बात ।
साथ देगा कोई नहीं,
जब होगी गम की रात ।।
ऐसा लगता है हमें,
बदलेंगे नहीं हालात ।
बस हाथ मिलाने तक ही वो,
पूछते नहीं हैं जात ।।
कभी मत सुनाना तुम,
अपने मन की बात ।
बस राज जानने के लिए यहाँ,
होगी प्यार से बात ।।
कवि – मनमोहन कृष्ण