“मजदूर”
मंजिल तुम्हारी रहा श्रम हमारा।
करता रहा क्यों जमाना किनारा।
मैं भी तेरी दुनिया से दूर नहीं हूं
मैं मजदूर हूं मजबूर नहीं हूं ।
श्रम के स्वेद से रचा इतिहास।
दुनिया ने किया मेरा ही उपहास।
चलता रहूंगा मगरूर नहीं हूँ।
मैं मजदूर हूं मजबूर नहीं हूँ।
श्रमदानी और निष्ठावान भी हूँ।
संस्कृति सभ्यता की पहचान भी हूँ।
इंसान हूँ खुदा से दूर नहीं हूं ।
मैं मजदूर हूं मजबूर नहीं हूँ।
एक एक ईंट पर लिखा है नाम हमारा।
काम है मेरा, पर हुआ नाम तुम्हारा।
तेरी मंजिल से मैं दूर नहीं हूँ।
मैं मजदूर हूं मजबूर नहीं हूँ ।
अनंतकाल से रहा इतिहास हमारा ।
शोषण के खिलाफ बुलंद किया नारा।
शक्ति से भरपूर मगर क्रूर नही हूँ
मैं मजदूर मजबूर नही हूँ।
स्वार्थ की बलि यू कब तक चढूँगा ।
हक की बात , मैं कहता रहूंगा
संघर्षरत रहूंगा थककर चूर नही हूँ
मैं मजदूर हूं मजबूर नहीं हूँ।
प्रशांत शर्मा “सरल”
नरसिंहपुर
एक प्रयास मात्र