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15 Jun 2023 · 1 min read

मजदूर की पीड़ा

दो वक्त की रोटी को
जिंदगी छोटी पड़ जाती है,
सुबह का निवाला खाकर,
जब धूप निकल आती है,

संध्या होने तक कष्ट सहा भरपूर,
कष्ट और भी गहरा जाता है,
जब मिलती नहीं पैगार,
भूखे ही सोना पड़ जाता है.

लाया था फट्टे पुराने कत्तर चुग बिन कर,
बैंया पक्षी को घोसला, बुनते देख कर,
तम्बू बनाया, जिसको गूथ कर,
कंप कपाती ठंड से बच पाऊंगा,
ऐसा सोच कर,
कमेटी वालों ने उसे भी तोड दिया,
गैर कानूनी सोच कर.

जीवन एक मजदूर का,
है अति कठिनाइयों से भरा हुआ,
सेठ लोग भी ये है, कहते,
हम भी निकले है इसी दौर से,
हम भी तो, कभी मजदूर थे,

वे पूर्वज थे आपके,
जो सेठ कहलवा गये,
वरन् मजदूरी कैसे होती,
मालूम नहीं, अभी तक आपको.

पूरे दिन साहब साहब मजदूर करे,
देते नहीं फूटी कौडी पास से,
रोते बिलखते होंगे, बच्चे उनके भी,
फिर भी दिल विनम्र होता नही .

Language: Hindi
69 Views
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