मजदूर की कहानी/मंदीप
मजदूर की कहानी/मंदीप
बना देता महल चौबारे दुसरो के लिए,
बना सका नही छोटी कोठरी अपने लिए।
लगा रहता सारा दिन चाहे गर्मी हो या सर्दी,
करता काम चंद पैसो के लिए।
बोझा डोता सारा दिन अपने शरीर पर,
मालिक डाट देता छोटी गलती के लिए।
खून खोलता मेरा भी,
सब्र कर लेता अपनों के लिए।
रखता ख्याल एक एक ईट का,
अपना ही घर बनाने के लिए।
हो गया अब में बूढ़ा,
ही चिन्ता लगी रहती कहा से लाऊ घर ख़र्च के लिए।
“मंदीप” कर इज्जत तू भी उस मजदूर की,
हर बार करता वो वफादारी अपने मालिक के लिए।
मंदीपसाई