** मगरूर **
~मगरूर~
//दिनेश एल० “जैहिंद”
कुछ लोग दुनिया में होते मगरूर ।
दौलत के नशे में वे होते बड़े चूर ।।
नेकी-उदारता से होते कोसो दूर ।
दौलतमंदों की ये है पुरानी दस्तूर ।।
कोई दौलत का अभिमानी है यहाँ ।
कोई निज फ़न में गुमानी है यहाँ ।।
किसी को सूरत का गुमान है यहाँ ।
किसी को रंगरूप पर नाज़ है यहाँ ।।
जो जवानी आए नजाकत आती है ।
कितनाहुँ बचो कमर बल खाती है ।।
फूलों को गुमान जब खूबसूरती का ।
भौंरों को गुमान फिर आशिक़ी का ।।
सब हैं नशे की खुमारी में डूबे यहाँ ।
कौन शरीफ दिखावट से चुके यहाँ ।।
सबको यहाँ है मगरूरी की बीमारी ।
सबको सताती है अपनी लाचारी ।।
घमंड में भी होता एक ईश्वरीय गुर ।
सब पर छाया रहता है इसका सुरूर ।।
थोड़ा तो चाहिए बचना इससे ज़रूर ।
वरना सब कुछ डूबता है जानो हुज़ूर ।।
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?दिनेश एल० “जैहिंद”
18. 05. 2017