[[[[मइया रूप बीच खड़ी]]]]
मइया रूप बीच खड़ी
// दिनेश एल० “जैहिंद”
एक तरफ लोग माँग रहे ईश्वर से अरदास !
एक बूढ़ी माँग रही लोगों से अपनी प्यास !!
अम्बे मइया खूब सजी है सब देखे निहार !
मइया रूप बीच खड़ी न करे कोई विचार !!
एक तरफ सजा है देख दुर्गे माँ का पंडाल !
लोग मस्त पूजन में ना करे माँ का ख्याल !!
उदर हेतु माँगे कोई माँगे सुख की खातिर !
माँगने में भी फर्क है जग में कितने शातिर !!
एक तरफ कोई माँग सहेजे माँगे
दूजा भीख !
माँगता हर कोई है देख जगत की यहीं रीत !!
जो भरे हैं वो भी माँगें भूखे भी पेट
भरें माँग !
भिक्षुओं का भाग फुटा समर्थों का
भी भाग !!
अबला एक असहाय माँग रही
भीड़ से भीख !
हाथ पसारे लाठी ले दुई सजल अँखियां मींच !!
दान देके थोड़ा भक्त सभी नवावे
मइया को शीश !
एक मइया भूखी रह जाए देख ये मानवी रीत !!
ऊलुल-जलुल कामों पर लोग पैसे क्यों लुटाते !
एक रीत बनाते तो यहाँ जन समान हो जाते !!
कहे कवि”जैहिंद”अंधभक्ति में पैसे
न बहाते !
गरीबों में बाँटके पैसे तुम नया जग बनाते !!
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दिनेश एल० “जैहिंद”
25. 07. 2019