जनता का पैसा खा रहा मंहगाई
जनता का पैसा खा रहा महंगाई,
जागो रे बहना जागो रे भाई ।
मजदूर किसान जागो रे,
युवा नौजवान जागो रे।
देश के गद्दार बन रहें हैं कसाई
जनता का पैसा . . . . . .
चांवल दाल सब्जी भाजी,
तेल बिजली और पानी।
राशन कपड़ा आभूषण का,
दाम को देखो है मन मानी।
पढ़ने वाले जागो रे,
गढ़ने वाले जागो रे।
क्या खायेंगे क्या बचायेंगे,
हो गया है कल्लाई।
जनता का पैसा . . . . . .
भ्रष्टाचारी राज में,
रिश्वत की है बिमारी।
काम नहीं होता है,
बिना पैसे का।
जनता की है लाचारी।
डाक्टर इंजिनियर जागो रे,
आन्दोलन के तोप दागो।
संघर्ष और निर्माण में है इसकी दवाई। जनता का पैसा . . . . . .
शिक्षा और स्वास्थ्य के खर्चे,
उठा-पटक के राशन भरते।
गरीबी लाचारी बेरोजगारी से,
तिल तिल कर लोग रोज हैं मरते।
दो दो हाथ होते हैं रोज जिंदगी में,
बिना संघर्ष किये न हारते हैं।
मुट्ठी बंध जाओ, कब तक बिखरे रहोगे,
वर्ना जिंदगी न जायेगी चलाई।
जनता का पैसा . . . . . .
हिंदू मुस्लिम अब नहीं चलेगा,
मंदिर मस्जिद अब नहीं चलेगा।
मंहगाई और रोजगार,
स्वास्थ्य और शिक्षा पे बात करनी होगी।
झूठ फरेबी और जुमले बाजी,
ये सब पाखंड और ढोंग ही होगी।
रोजी रोटी जो दे ना सके,
ऐसे सरकार की अब करो बिदाई।
जनता का पैसा . . . . . .
नेताम आर सी