मोरे मन-मंदिर….।
मोरे मन-मंदिर में कभी यूं भी आओ कान्हा ।
गूंजे धुन मधुर तुम बांसुरी बजाओ कान्हा ।।
हाथ जोड़ चरणों में बैठूँ,
मन भक्ति में रम जाये ।
तेरे बिन कुछ याद रहे न,
ऐसी भक्ति मिल जाये ।
देकर अपनी भक्ति पावन,
मन की पीर मिटाओ कान्हा ।।
मोरे मन-मंदिर…..।
सांझ- सवेरे मन के भीतर,
बस तेरी छवि निहारूँ।
साथ तेरा ऐसा मिल जाए,
दुनिया को मैं बिसारूँ ।
आकर मुझको रंग में अपने,
कुछ ऐसे रंग जाओ कान्हा ॥
मोरे मन-मंदिर……।
रचनाकार :- कंचन खन्ना,
मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत)।
सर्वाधिकार, सुरक्षित (रचनाकार)।
दिनांक :- ०८.०१.२०१६