मंजिल को अपना मान लिया।
आंखों में नव अरमान लिया,
मंजिल को अपना मान लिया।
फिर कठिन क्या,आसान क्या,
जो ठान लिया सो ठान लिया
जब घर से प्रस्थान किया,
दिन-रात एक ही काम किया।
तनिक नहीं विश्राम किया,
सर्वस्व उसी के नाम किया।
मुश्किलों को अपना मान लिया,
शूलों पर चलना जान लिया।
लक्ष्य को पाने के लिए,
खुद को खुद से अनजान किया।
स्वंय पथ निर्माण किया,
अच्छा बुरा पहचान लिया।
खुद जलकर, अपने उजाले से,
‘दीप’ ने सबको प्रकाशवान किया।
मंजिल को अपना मान लिया।
मंजिल को अपना मान लिया।
-जारी
©कुल’दीप’ मिश्रा