मंच
उम्र के इस पड़ाव पर मंच पर चढ़ा दिया
मेरे हाथ में दोस्त ने माइक पकड़ा दिया
कोई गीत कविता सुनाने की ख्वाइश की
मेरे चाहने वालों ने मुझसे फरमाइश की
लड़खड़ाते कदम अचानक से सीधे हो गए
हम भी जमाने की भीड़ देख कहीं खो गए
तालियों की गड़गड़ाहट ने एक जोश भर दिया
मानो मुर्दा हुए शरीर में नव जीवन भर दिया
फिर शुरु हुआ गीत कविता ग़ज़ल का दौर
एक के बाद एक, और एक के बाद एक और
ना जाने कब रात गुजरी और कब भोर हो गई
हम भी नींद से जागे और सपना कविता हो गई
वीर कुमार जैन
06 सितंबर 2021