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7 Aug 2023 · 1 min read

इक तमन्ना थी

इक तमन्ना थी

इक तमन्ना थी
पलकों में अपनी
बसाकर तुम्हें
अपना बनाने की।
इक तमन्ना थी
मनमंदिर में तुम्हारे
अपनी चाहत का
शंख बजाने की।
इक तमन्ना थी
राह में तुम्हारे
चाँद-तारे नहीं
खुद को बिछाने की।
इक तमन्ना थी
संग तुम्हारे
सजाकर महफिल
रात-दिन बिताने की
इक तमन्ना थी
प्रेरणा से तुम्हारी
जीवन-पथ के
हर बहाव में बह जाने की।
इक तमन्ना थी
तुम पर
एक कविता ही नहीं
पूरा महाकाव्य रचने की।
इक तमन्ना थी
माँग में तुम्हारी
अपने नाम का
सिन्दूर भरने की।
तमन्ना
जो सिर्फ़
तमन्ना ही
बनकर रह गई।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़

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