*भ्रष्टाचार*
आज है भ्रष्टाचार का युग हुआ, चारों ओर है भ्रष्टाचार।
कोई क्षेत्र नहीं बचा है, राजनीति हो या व्यापार।
राजनीति हो या व्यापार, इससे कोई बच नहीं पाया।
भ्रष्टाचार के मुंह में सब चली गई माया।।१।।
बच नहीं रहा कोई आज, इसकी मार से।
फैला रहा आतंक यह, अपने वार से।
लूट खसौट अपहरण व रिश्वतखोरी,
कर रहे हैं साहब भी, इसे चोरी चोरी।।२।।
पहनते हैं श्वेत वस्त्र, और लगते हैं सज्जन।
लेकिन आंतरिक रूप से,वे बड़े हैं दुर्जन।
सभा में कह देते हैं, कि काम जरूर करवाएंगे।
भ्रष्टाचार से बचने का, उपाय तुम्हें बताएंगे।।३।।
कर देते हैं वादे, वो तो हाथ हिलाकर।
रो पढ़ते हैं बीच, किसी सभा में जाकर।
हो जाएगा भ्रष्टाचार दूर, अगर तुम शिक्षित हो अच्छे।
शिक्षित करो खुद को, व अपने बीवी बच्चें।।४।।
झुककर मांगते फिरते हैं, जनता से वोट।
देखने में सज्जन लगते, मन में रखते खोट।
मन में रखते खोट, परन्तु दया दिखाते।
भ्रष्टाचारी है वे, मानवता के नाते।।५।।
भ्रष्टाचारी न बनाओ, काम करो तुम इस पर डटकर।
सावधान रहो इससे! रहो शिक्षित सतर्क बनकर।
करो सामना हिम्मत से, तुम भ्रष्टाचार का।
अंतिम विचार है यह, दुष्यन्त कुमार का।।६।।