भोली बिटिया
गीत
कलम छोड़कर भोली बिटिया झाड़ू-पोछा करती है।
नन्हें- कोमल हाथ- पाँव से पेट सभी का भरती है।
पेट-पीठ सब चिपके-चिपके मजबूरी की मारी है।
चेहरे की मुस्कान बताती वह तो अभी वेचारी है।
रहम नहीं है आज किसी को हाँफ-हाँफ कर मरती है।
कलम छोड़कर भोली बिटिया झाड़ू- पोछा करती है।।
जब भी पावन दिन है आता मुहबोली वंदन होता।
वक्त गुज़रते भूल गए फिर बेटी का क्रंदन होता।
शर्म नहीं आती है उनको इक दिन जान लुटाते हैं।
पाक-साफ़ दिन बीत गया फिर उससे कर्म कराते हैं।
मजबूरी में दुख-काँटों से वह दिन-रात गुज़रती है।
कलम छोड़कर भोली बिटिया झाड़ू-पोछा करती है।
पढ़ेगी बेटी बढ़ेगी बेटी बस कागज़ की बातें हैं
वाणी से ही घोल सुधा-रस फूले नहीं समाते हैं
नहीं सुरक्षित आज बेटियाँ कहीं किसी भी कोने में
आँख खोलकर देखो उसका वक्त गुजरता रोने में।।
मनुज भेड़ियों की हरक़त से सदा राह में डरती है।
क़लम छोड़कर भोली बिटिया झाड़ू पोछा करती है।
डॉ छोटेलाल सिंह मनमीत